रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है लोक आस्था का महान पर्व छठ
Sahibganj News : नहाय-खाय के साथ आरंभ होनेवाला लोकआस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं। महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया।इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
महाभारत काल में छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। यह त्यौहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है।इस पूजा के लिए चार दिन महत्वपूर्ण हैं। नहाय-खाय, खरना या लोहंडा, सांय अर्घ्य और सूर्योदय अर्घ्य।
छठ की पूजा में गन्ना, फल, डाला और सूप आदि का प्रयोग किया जाता है। छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है। इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूर्य की उपासना उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है।
इस दिन सूर्यदेव की आराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन नदी, तालाब या फिर किसी पोखर के किनारे पर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
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