पत्रकार एवं पत्रकारिता पर विशेष, देखिए खास रिपोर्ट


पत्रकार एवं पत्रकारिता

संजय कुमार धीरज और शाहबाज आलम की कलम ✍ से पाठकों तक़ सरकार वे समाज को चाहिए कि पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करें उन्हें सच कहने से न रोकें क्योंकि यही लोग लोकतंत्र के चौथे खम्भे और जनमत के निर्माता हैं। लोकतंत्र में इनका अलग महत्व और पहचान है

त्रकारिता का इतिहास पुराना है। दिन भर की घटना और समाचारों को पत्थर या धातु की पट्टी पर अंकित कर प्रमुख स्थानों पर रख दिया जाता था। जिससे अधिक से अधिक लोगों का ध्यान आकर्षित हो सकें।

Special report on journalist and journalism, see special report

इनमें प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति नागरिक सभाओं में लिए गये निर्णय ग्लेडिएटरों की रोमांचक लड़ाईयाँ, कब और कहाँ होंगी उनके रिजल्ट आदि लिखे जाते थे।

ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सबसे पहले बंगाल पर अधिकार किया था।विदेशी शासन के खिलाफ राजनैतिक जागरूकता के साथ समाज में फैली कुरीतियों की ओर उस समय के समाज सेवियों ने जन समाज का ध्यान आकर्षित करने के लिए

समाचार पत्रों का सहारा लिया जिससे सामाजिक चेतना फैली और भारत में पत्रकारिता राष्ट्रीयता से जुडी। ब्रम्ह समाज के संस्थापक सती प्रथा के विरोधी राजा राम मोहन राय ने प्रेस को सामाजिक चेतना के लिए इस्तेमाल किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर चोट करने के लिए कई पत्र शुरू किये।


जिनमें बंगाल गजट का प्रकाशन 1816 में किया गया। यह भारतीय भाषा का पहला पत्र था। अब भारत में फ़ारसी और बंगाली में समाचार पत्र छपने लगे। 30 मई 1826 के दिन भारत में पहला हिंदी अखबार उदन्त मार्तण्ड पंडित जुगल किशोर शुक्ल द्वारा प्रकाशित किया गया।

हिंदी भाषा के समाचारों ने जन मानस को अपने साथ जोड़ा, अंग्रेजी के प्रभाव को भी कम किया। देश आजाद हुआ तो देश में प्रेस की प्रगति और पत्रकारिता का अभूत पूर्व विकास देखा गया। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रमुख स्थान है।

प्रेस की आजादी के लिए बुद्धिजीवी सदैव जागरूक रहे हैं। अंग्रेजी के साथ हिंदी के अनेक समाचार पत्र छपते हैं। उनके पाठकों की संख्या भी बढती जा रही है। कई समाचार पत्र स्थानीय हैं। लेकिन फिर भी पत्रकारों का जीवन आसान नहीं होता। अपने शौक और जनून को बचाये रखना आसान नहीं होता।


आज दो प्रकार के पत्रकार हैं। प्रसिद्ध पत्रकार जिनका राजनैतिक गलियारों में नाम और चर्चा है। इनका जीवन सुखद है। सरकार से उन्हें जीवन की सही मूलभूत सुख - सुविधाएं मिली हैं। समय-समय पर सरकारी अवार्डों से उन्हें सम्मानित भी किया जाता है।

राजनीतिक दल इन्हें अपने प्रवक्ता भी नियुक्त करते हैं। कईयों ने अपना स्थान केवल अपनी प्रतिभा से नहीं बनाया है। उनकी अपनी सूझबूझ और कूटनीतिक ह्थकंडों का भी स्थान है। उनकी बात अलग है। लेकिन पत्रकारिता महंगा शौक व नशा है।

न जाने कितने पत्रकार कुछ कर दिखाने के जोश में अपना जीवन भी दांव पर लगा देते हैं। पत्रकारों का जीवन सुरक्षित नहीं है, वह खतरों से खेल कर सनसनी खेज समाचार लाते हैं, या स्टिंग आपरेशन करते हैं। जब से अपराधी तत्वों का राजनीति में प्रवेश हुआ है,


वह अब रंगे सियार की भांति लक झक सफेद कुर्ता पहन कर अपनी चालढाल को बदल, सौम्यता का अवतार धर कर अपना गुणगान कराना चाहते हैं। प्रिंट मीडिया में उनके चित्र और पक्ष में लेख छपें। उन समाचारों को दबाया जाये, जिनमें उनके कुकृत्य उजागर होते हैं

सच कहना लिखना जोखिम भरा काम है। कई पत्रकारों की हत्या भी हुई, पता ही नहीं चला, हत्या की सुपारी किसने दी गयी थी। सरकार और समाज को चाहिए कि पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करें। उन्हें सच कहने से न रोकें। क्योंकि यही लोग लोकतंत्र के चौथे खम्भे और जनमत के निर्माता हैं।


लोकतंत्र में इनका अलग महत्व और पहचान है। यह सरकार के साथ साथ विरोधियों को भी कटघरे में खड़ा करते हैं। हमारी बात को सरकार और जनता तक पहुंचाने के माध्यम हैं। आज महिला पत्रकार भी किसी से कम नहीं हैं, कर्तव्यों को बखूबी से अंजाम दे रही हैं, जोखिम उठाती हैं।उनकी सुरक्षा की चर्चायें भी होती हैं।

उन्हें सुरक्षित अपना काम करने देने की आजादी मिलनी चाहिए। पत्रकारों को जेल की हवा भी खानी पड़ी है। नक्सलाईट प्रभाव के क्षेत्रों में जाते हैं, उन्हें सफेदपोश नक्सलवादियों का पक्षधर माना जाता है। उनका पक्ष जनता की नजरों में लाने की कोशिश करते हैं। नक्सल उन्हें शक की नजरों से देखते हैं। सरकारी मुखबिर मानते हैं।

सरकार उन्हें उनका समर्थक और भेदिया मानती है। कई पत्रकार युद्ध क्षेत्र जहाँ हर पल मौत बरसती है, वहां से ताजा खबरों के लिए अपनी जान जोखीम में डालते हैं। कुछ तो आतंकवादियों का भी इंटरव्यू ले आते हैं। वह भी अपना पक्ष रखने के लिए ललायित रहते हैं।


किसी स्टूडेंट से पूछो, आप क्या बनना चाहते हैं? वह मुस्करा कर कहते हैं ‘पत्रकार’! मीडिया में जाना चाहते हैं। लेकिन माता - पिता ने जाने नहीं दिया। उन्हें समझाया जाता है कि इसमें भविष्य अनिश्चित है।

उन्हें बेबाकी से अपनी बात कहना, किसी के भी सामने माईक लगा कर प्रश्न करना, मीडिया का चकाचौंध से परिपूर्ण जीवन आकर्षित करता है। लेकिन क्या सच्चाई में पत्रकार सुखी हैं ?पत्रकार हमारी, आप की तरह मनुष्य हैं, जिनकी अपनी भावनायें,

अपने दुःख - सुख होते हैं। हर परिस्थिति में वे अपना काम करते हैं। कईयों की माली हालत बहुत खराब है। कई बार पांच सितारा होटलों के कांफ्रेंस रूम में प्रेस कांफ्रेंस के बाद शानदार दावत दी जाती है।


लेकिन घर में परिवार विपिन्नावस्था में जीवन बिता रहा है। उनके गले से निवाला नहीं जाता, फिर भी वह अपना दुःख व आर्थिक स्थिति का किसी से जिक्र नहीं करते। कुछ नया करने की धुन में लगे रहते हैं। अगली कड़ी में पढ़िए 8 वीं पास भी बन गए पत्रकार, अपराधी भी लिख रहे प्रेस। कैसे बचेगी पत्रकारिता?

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By : Sanjay Kumar Dhiraj & Shahbaz Alam

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