गंगा में उपलाते और बहते शव दे रहे एक दूसरी महामारी को आमंत्रण
Sahibganj News : साहिबगंज महाविद्यालय के एनएनएस और सिद्धो - कान्हू विश्वविद्यालय झारखंड द्वारा "गंगा में बहते शव, एक दूसरी महामारी को आमंत्रण" विषय पर राष्ट्रीय वर्चुअल मीटिंग का आयोजन किया गया।
आज के राष्ट्रीय वर्चुअल मीटिंग के मुख्य वक्ता भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, पटना के वैज्ञानिक एवं प्रभारी अधिकारी डॉ. गोपाल शर्मा ने गंगा में बहते शवों एवं इसके कुप्रभाव तथा नई महामारी के निमंत्रण पर स्लाइड शो के माध्यम से काफी विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि गंगा नदी में कई प्रकार के जन्तुओं का निवास होता है। गंगा में कोविड -19 से संक्रमित मृत शवों को जिस तरह से उत्तर प्रदेश तथा बिहार में गंगा नदी के किनारे एवं बीच धार में बहते हुए देखा गया है,
इससे लगता है कि यह कोई न कोई नासमझी का परिणाम है। क्योंकि हरेक भारतीय को पता है कि गंगा में अपने परिजनों के शवों को बिना अंत्येष्टि के नहीं फेंका जाता हैI ऐसी कौन सी विपदा आ गई, जो इतनी मात्रा में शवों को गंगा में फेंका और बहाया गया या गंगा नदी के किनारे दफना दिया गया।
उन्होंने कहा कि सुदूर गांवों में लोगों के बीच जरुर कोविड - 19 का डर था। इसके कारण लोग चोरी - छिपे गंगा में इतने शवों को प्रशासन के नजर से बचाकर फेंकते गए , और जब लाशें सड़ कर नदी के धार में बहने लगी तब प्रशासन की नींद खुली।
तब तक काफी देर हो चुकी थी। आनन - फानन में सभी शवों को नदी से निकल कर उसके डीएनए टेस्ट के लिए तथा कोरोना का सैंपल लेकर प्रशासन के द्वारा अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन कई शव तो काफी दूर तक बह गए होंगे। जिसमें पटना के पास भी कई शव मिले हैं।
लेकिन अब क्या किया जाय ? इस पर डॉ. शर्मा ने कहा कि अगर अभी भी हम नहीं चेते तो वो समय दूर नहीं, जब कोई नई महामारी आ सकती है। क्योंकि गंगा में रहने वाले कई जंतु मांसाहारी होते हैं। जो सिर्फ और सिर्फ शवों को खाते हैं।
जिसमें मुलायम कवच बाले कछुए, कुछ कैट फिशेस, सियार, गोह तथा घुमन्तु कुत्ते शामिल हैं। अगर इन जानवरों के द्वारा कोविड संक्रमित शवों को खाया जाएगा तो ऐसी सम्भावना है कि निकट भविष्य में कोई न कोई नई महामारी मानव आबादी के लिए ख़तरा उत्पन्न कर सकती है।
राष्ट्रीय संगठन महामन्त्री, गंगा महासभा, गंगा क़ानून प्रारूप समिति, भारत सरकार के सदस्य गोविन्द शर्मा ने कहा कि कोरोना महामारी के इस दौर में हम व्यक्तिगत और सामाजिक, दोनों ही स्तर पर बेहद कमज़ोर साबित हुए हैं। कोराना के सामने पूरी दुनिया विवश हो गई और सरकारें पस्त हो गईं।
आज मनुष्यता का एक क्रूर चेहरा सामने आया है। परिजनों के शवों को लोग लावारिस छोड़कर भाग जा रहे हैं। दवाइयों, ऑक्सीजन सिलेंडर, अस्पताल के बेड, दैनिक उपभोग की वस्तुओं की कालाबाज़ारी हो रही है।
कोरोना जैसी महामारी से बचने और इसके जैसी महामारियों से लड़ने के लिए बताया गया कि हमें आयुर्वेद और अपनी परंपराओं को पुनः अपनाना होगा। प्रकृति और पर्यावरण के साथ तालमेल बैठाना होगा। यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन करेंगे।
इस वर्चुअल मीटिंग में वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की सीनियर साइंटिस्ट डॉ. रुचि भदोला, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की शोधकर्त्ता एकता शर्मा, एनएसएस समन्वयक डॉ.रणजीत कुमार सिंह, सदस्य धीरज कुमार,
झारखंड राज्य के एनएसएस समन्वयक डॉ. बृजेश कुमार, डॉ. मेरी मार्गेट टुडे, डॉ. राहुल कुमार संतोष, डॉ.चंदन बोहरा, प्रो. मनोहर कुमार, खुशीलाल पंडित, अंजलि, आकांक्षा कुमारी, अजिताभ कुमार, ब्रजेश कुमार पिनाकी घोष, हेमलता, सलोनी, आयुष कुमार व अन्य शामिल हुए।
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