गरीबों की लॉकडाउन : रचना - खुशी लाल पंडित
गरीबों की लॉकडाउन
इस कोरोना की दौर में हमें
अपनों की चीखें सुनाई देती है,
कब्रिस्तान और श्मशान घाटों में
लाशों के ढेर दिखाई देती है।
यह कोरोना महामारी सभी को
अपनी जाल में फंसा रहा है,
गरीबों की हालात को ये
बद से बदतर बना रहा है।
गरीब मजदूर किसानों की मदद करना
अब हमारी जिम्मेदारी है,
भूखमरी उनके लिए बन रही
सबसे बड़ी महामारी है।
अपना परिवार चलाने के लिए
जो वर्षों से कमा रहे हैं,
उनसे जाकर पूछिये मजबूरी
वो अनाज कहाँ से ला रहे हैं।
दो वक्त की रोटी के लिए वो
दर - दर ठोकरें खा रहे हैं,
दो वक्त की रोटी के लिए वो
दर - दर ठोकरें खा रहे हैं!
स्वरचित कविता :
✍️खुशी लाल पंडित, एनएसएस वालंटियर
साहिबगंज महाविद्यालय साहिबगंज
साहिबगंज महाविद्यालय साहिबगंज
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