मजदुर दिवस पर पढ़िए खास कविता : हा मै मजदूर हुँ। हा मै मजबुर हुँ।
हा मै मजदूर हुँ
मैं एक मजदूर हुँ,
हां मैं मजबूर हुँ।
"रब" के रहमतो से कोसो दूर हुँ,
हा मै मजदूर हुँ।।
दूसरो का छत बनता हुँ,
पर खुदका घर बेछत वाला मे रहता हुँ।
हा मै मजदूर हुँ।
हा मै मजबुर हुँ।।
"रब "के रहमतो से कोसो दूर हुँ,
हर शुबह मै चिडियो से पहले उठ जाता हुँ।
बिना खाए पिये काम के तलास मे निकाल जाता हुँ,
आराम छोड़ कर आराम कमाने मीलो दूर पैदल जाता हुँ।।
दिन को कमाता हुँ,
तब जा के रात को खता हुँ।
हा मै मजदूर हुँ।
हा मै मजबुर हुँ।।
मेरा भी भरा पुरा परिवार है,
बेटा है बेटी है माता है पिता है।
परिवार मै सिर्फ मै ही कमाता हुँ,
एक दिन कमाता हुँ,
एक ही वक़्त खता हुँ।
फिर भी मै खुश हुँ।।
"रब "के रहमतो से कोसो दूर हुँ।
हा मै मजदूर हुँ।
हा मै मजबुर हुँ।।
बदन मे एक एक ही वस्त्र है
उसी को हफ्ते भर पहनता हुँ।
इसी कपड़े को इद मे पहनता हुँ।
होली मे भी पहनता हुँ।
हा मै मजदूर हुँ।
हां मैं मजबूर हूं।।
"रब "के रहमतो से कोसो दूर हुँ।
हा मै मजदूर हुँ।
हा मै मजदूर हुँ।।
अपील खास अपील
इस मजदूर दिवस पर आप तमाम बिल्डरों से मजदूरो को काम कराने वालो से मजदूरों का पसीना सूखने से पहले उसे मजदुरी दे देन आपके रुपयो से ही उस गरीब मजदूर के पुरे परिवार को एक वक़्त का खाना नसीब होता है।
आप तमाम देशवासियों और साहिबगंज जिला वासियों को मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
रचना:-मो शाहबाज आलम की कलम से
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