मैं हार क्यों मानूँ : रचना - खुशी लाल पंडित


मैं हार क्यों मानूँ

मैं हार क्यों मानूँ : रचना - खुशी लाल पंडित

अब मंजिल बड़ा है तो 

मुसीबतें भी तो आएगीं,

रास्ते चाहे कितना भी कठिन हो,

हम उस पर चल कर दिखाएंगे।


जब तक ठोकर न लगे पैरों में,

हम संभल कैसे पाएंगे ?

आज भले ही परछाई बनकर,

चल रहे हैं पीछे -पीछे,

कल जुगनू बनकर , 

सबको रास्ता दिखाएंगे। 


 जिन्हें लगता है कि

 हम बारिश की बूंदें हैं,

आज है कल चले जाएंगे,

 बस वक्त का कुछ पहरा है

 हमारी जिंदगी में,

ये वक़्त भी बहुत 

जल्द गुजर जाएंगे।

और सूरज बनकर हम

सबको अपनी चमक दिखाएंगे


      स्वरचित कविता
✍️खुशीलाल पंडित
    साहिबगंज महाविद्यालय साहिबगंज

khusilal pandit


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