भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन को मिला पत्रकारिता के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ पुलित्ज़र पुरस्कार


इंटरनेशनल रिपोर्टिंग कैटेगरी में शिंजियांग प्रांत की सीरीज के लिए राजगोपालन को पुलित्ज़र पुरस्कार से नवाजा गया है। मेघा ने अशांत शिंजिआँग प्रान्त में लाखों मुसलमानों को हिरासत में रखने के लक्ष्य से चीन द्वारा गोपनीय तरीके से बनाये गए जेल और अन्य भवनों के बारे में जानकारी सार्वजनिक की थीं।

भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन को मिला पत्रकारिता के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ पुलित्ज़र पुरस्कार

इंटरनेशनल रिपोर्टिंग कैटेगरी में शिंजिआँग प्रान्त की सीरीज के लिए मेघा को इस पुरस्कार के लिए नवाजा गया है। 'बजफीड न्यूज' की राजगोपालन समेत दो अन्य पत्रकारों को इनोवेटिव इंवेस्टिगेटिव पत्रकारिता के लिए पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है।

यह पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला अमेरिका का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है। तंपा बे टाइम्स की नील बेदी को लोकल रिपोर्टिंग के लिए पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है। वह एक खोजी रिपोर्टर हैं। बेदी के साथ-साथ कैथलीन मैकग्रॉरी को भी इस सम्मान से नवाजा गया है।

मैकग्रॉरी को शेरिफ ऑफिस की एक पहल को उजागर करने वाली सीरीज के लिए पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जो भविष्य में अपराध के संदिग्ध लोगों की पहचान करने के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग का उपयोग करती है।

साल 2017 में चीन ने शिंजियांग प्रांत में लाखों मुस्लिमों को हिरासत में लिया था, तब राजगोपालन पहली रिपोर्टर थीं, जिन्होंने इंटरनेशनल कैंप का दौरा किया था। उस समय चीन ने ऐसी कोई जगह होने से इंकार किया था। 'बजफीड न्यूज' ने पुलित्जर पुरस्कार के लिए एंट्री पर लिखा था।

'इस खबर के जवाब में, चीनी सरकार ने उसे चुप कराने की कोशिश की, उसका वीजा रद्द कर दिया और उसे देश से निकाल दिया। लंदन में रहकर पत्रकारिता कर रहीं मेघा राजगोपालन ने तब चुप रहने से इंकार कर दिया था और अपने दो सहयोगियों के साथ मिलकर चीन के झूठ को बेनकाब किया था।

बता दें कि पत्रकारिता के क्षेत्र में पुलित्जर पुरस्कार सबसे पहले 1917 में दिया गया था  और इसे अमेरिका में इस क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में 2020 जैसे वर्ष कम ही रहे होंगे। जो कुछ भी हुआ, उस पर कोविड-19 का प्रभाव रहा।

पहले पुरस्कार समारोह का आयोजन 19 अप्रैल को होना था, लेकिन इसे जून तक के लिए स्थगित कर दिया गया था। पिछले साल भी विजेताओं की घोषणा दो हफ्ते की देरी से हुई थी। क्योंकि बोर्ड सदस्य महामारी संबंधी परिस्थितियों के कारण व्यस्त थे और उम्मीदवारों के आंकलन के लिए उन्हें अधिक समय की जरूरत थी।

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