सुनो! तुम सुंदर हो। एक कहानी जिंदगी की, लेख : अमृता तिवारी
सुनो! तुम सुंदर हो : जिस दौर में हम रह रहे हैं वहां निसंकोच बाहरी खूबसूरती को ज्यादा महत्व दिया जाता है। यह बिल्कुल भी मायने नहीं रखता कि इंसान का चरित्र कैसा है उसमें क्या अच्छाइयां है उसमें क्या गुण है।
लोगों की बातें सुनेंगे तो हमें पता चलेगा कि इससे भी सिर्फ महिला वर्ग ही पीड़ित है लेकिन अगर हम इसे गहराई से जानने की कोशिश करेंगे तो हमें पता चलेगा कि इससे समाज का हर एक वर्ग पीड़ित है।
बात करते हैं हर एक वर्ग को हो रही परेशानियों के बारे में
- बच्चा
लेकिन इन्हीं बच्चों के साथ कई तरह के अपमानजनक घटनाएं होती हैं जिनमें रंग को लेकर भेदभाव भी एक है। किसी की बेटी अगर काली है तो उसकी मां को कई तरह से ताने सुनने पड़ते हैं कि तुमने एक काली बेटी को जन्म दिया।
इससे आगे चलकर शादी कौन करेगा हमारी घर की बोझ बनेगी अगर लड़का काला होता तो उसे उसके दोस्त यह कहकर चिढ़ाते हैं कि तुझे कोई लड़की नहीं मिलेगी और भी कई तरीकों से उनका मनोबल भरपूर गिरा दिया जाता है।
- व्यस्क
आज हमारे समाज में बाहरी सजावट का बहुत चलन हैं और यकीनन इससे यह वर्ग सबसे ज्यादा ग्रसित है। नौजवान लड़के लड़कियां अपने पाठन संस्थानों पर हो या कार्य स्थलों पर, उन्हें उनके रंग रूप का आकलन कर उसी हिसाब उन्हें सम्मान दिया जाता है।
इसका कितना बुरा परिणाम सामने वाले पर पड़ता है इससे वक्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह एक निर्णायक मंडली की तरह अपनी राय रखकर आगे बढ़ जाते हैं। मगर वह व्यक्ति जो इसे सुनता है उसका मनोबल तो गिरता ही है।
साथ ही साथ एक हीन भावना उत्पन्न हो जाती है खुद के लिए जो आगे चलकर कई बार भयानक घटनाओं का भी रूप ले लेती है। इसीलिए यह रंग रूप के भेदभाव को मिटाना बहुत आवश्यक है ना सिर्फ खुद के लिए बल्कि एक स्वस्थ और खुशहाल समाज के लिए भी।
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