पूरी श्रद्धा के साथ सम्पन्न हुआ वट सावित्री पूजन : महिलाओं में रहा उत्साह


साहिबगंज - राजमहल राष्टीय उच्च पथ किनारे अवस्थित कृषि विज्ञान केंद्र के पास पुराने बरगद के नीचे और राजमहल प्रखंड अंतर्गत सुखसेना के जमनीघाट सहित विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न गांवों से आई हुए सुहागिन महिलाओं ने गुरुवार को वट वृक्ष व सावित्री की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु की कामना की।

पूरी श्रद्धा के साथ सम्पन्न हुआ वट सावित्री पूजन : महिलाओं में रहा उत्साह

सुहागिनों ने उपवास रखकर बरगद पेड़ (वट वृक्ष) के पास पूजन सामग्री के साथ पहुंचकर विधि - विधान से पूजा अर्चना की।  जहां सुहागिन महिलाओं ने बरगद के पेड़ को धागों से बांधकर अपनी लंबी सुहागिन होने की कामना की।

इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी सुहाग की रक्षा के लिए बरगद के पेड़ के नीचे पूजन करती हैं और पेड़ का परिक्रमा करती हैं। धार्मिक महत्व के साथ इस पेड़ का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है।

इस दौरान सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की रक्षा व लंबी उम्र के लिए नए वस्त्र पहनकर, बांस का बना पंखा लेकर, फल, धूप, मौली, अक्षत, चंदन, तिलक लगाकर, बरगद पेड़ के तने में लपेटकर सात फेरे लगती हैं।

पूजा - अर्चना के बाद व्रती महिलाओं द्वारा अपने पति के चरण धोकर अपने सर पर पानी लेती हैं। उसके बाद पंखा डोला कर अमर सुहाग की आशीर्वाद लेती हैं।


फिर अपने हाथों से पति को प्रसाद ग्रहण करवाने के बाद खुद प्रसाद ग्रहण कर पूजा को समाप्त करती हैं। यह परंपरा वर्षों से चलती आ रही है।  नवविवाहित महिलाओं में इस पर्व के प्रति ज्यादा उत्साह देखा जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री का सत्यवान नामक युवक से विवाह हुआ था। दोनों का दांपत्य जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था। परंतु एक दिन किसी महर्षि द्वारा सावित्री को यह ज्ञात हुआ कि, उसके पति सत्यवान की आयु बहुत सीमित है, और उनकी जेठ अमावस्या के दिन मृत्यु हो जाएगी।

यह सुनकर सावित्री बहुत चिंतित रहने लगी और पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए पूजा अर्चना करने लगी। एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने जंगल की ओर जाने लगा। हठ करके सावित्री भी उनके साथ गई।

क्योंकि सावित्री को ज्ञात था कि उसके पति की आयु कम है और आज का दिन जेठ अमावस्या का दिन है। इसलिए वह अपने पति के साथ जंगल जाने के लिए हठ करने लगी।

  कुछ देर बाद जंगल में सत्यवान के सर में दर्द  प्रारंभ हो गया और दर्द के कारण वह अपनी पत्नी सावित्री की गोद में सर रखकर बरगद के पेड़ के नीचे लेट गए। तभी यमराज महाराज प्रगट हुए और सत्यवान की प्राणवायु हर कर यमलोक की ओर जाने लगे। तभी यमराज के पीछे सावित्री भी जाने लगी।

सावित्री को अपने पीछे आते देख यमराज ने पूछा की तुम मेरे पीछे - पीछे क्यों आ रही हो ? यमलोक में जीवित प्राणी का आना वर्जित है। तुम वापस पृथ्वीलोक लौट जाओ परंतु सावित्री एक न मानी। सावित्री अपने पति के प्राण वायु के साथ पृथ्वीलोक जाना चाहती थी।

अपने हठ के कारण वह  यमराज के पीछे - पीछे चली जा रही थी। यमराज ने सावित्री से पीछा छुड़ाने के लिए पति की प्राण के अलावा तीन वरदान मांगने को कहा।






पत्नी के पतिमोह और उसके लंबी आयु की कामना यमराज को दुविधा में डाल दिया।  अंततः यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस किया और यमलोक चले गए।  इस दिन से वट सावित्री पूजा की प्रथा प्रारंभ हो गई। जिसमें सुहागिन महिलाओं द्वारा यह पूजा संपन्न किया जाता है।

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