युवा फ़िल्म निर्देशक निरंजन भारती ने मुख्यमंत्री व कला संस्कृति मंत्री को लिखा पत्र
Sahibganj News : भारत सरकार से सम्मानित युवा फ़िल्म निर्देशक निरंजन भारती ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व अल्पसंख्यक कल्याण विभाग तथा पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य मंत्री हफीजुल हसन को स्थानीय सिनेमा एवं स्थानीय कलाकारों के उत्थान के लिए एक पत्र लिखा है।
निरंजन भारती ने अपने पत्र में लिखा कि 15 नवंबर 2021 को झारखंड अपना 21 वर्ष पूरा करेगा। इस दो दशक के दौर में झारखंड की कला संस्कृति एवं स्थानीय सिनेमा को लेकर तमाम सरकारों के द्वारा कई बार घोषणाएं हुई।
बड़े - बड़े वादे किए गए, लेकिन इस दो दशक के दौर को हम देखते हैं तो यह दिखाई पड़ता है कि स्थानीय सिनेमा और उससे जुड़े स्थानीय कलाकार आज भी मुफलिसी के दौर में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।
वर्तमान में झारखंड में स्थानीय मूलवासी और आदिवासियों की सरकार है, ऐसे में हर झारखंडी कलाकर की अपेक्षाएं सरकार से बढ़ जाती है। ऐसे में यदि अब स्थानीय कलाकारों और सिनेमा के लिए बेहतर नहीं होता है तो कब होगा? यह सवाल कौंधता है।
आगे उन्होंने लिखा है कि झारखंड में साल 2015 में फिल्म नीति बनाई जरूर गई, लेकिन फिल्म नीति को आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया। आज भी यह फिल्मी नीति फाइलों में धूल फांक रही है और यहां के स्थानीय कलाकार रोजी - रोटी के लिए तरस रहे हैं।
एक ऐसे दौर में जब कोरोना काल चल रहा है, तब सरकार की यह जिम्मेवारी हो जाती है कि कलाकारों के लिए स्थानीय सिनेमा को प्रोत्साहित किया जाए। जिससे स्थानीय सिनेमा के विकास के साथ - साथ उससे जुड़े कलाकारों का भी विकास हो सके।
भारती ने अपने पत्र में बतौर फिल्म निर्देशक अपनी पीड़ा सहित कुछ सुझाव मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग तथा पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य मंत्री हाफिजुल हसन को कुछ सुझाव दिए हैं, जिसमें क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा देने और कलाकारों,
टेकनीशियनो के उत्थान के लिए मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन सिनेमा घरों के लिए सख्त नियम बनाने की मांग, महाराष्ट्र, पंजाब, बंगाल, दक्षिण भारत, यूपी, बिहार आदि राज्यों की तरह झारखंड में बनने वाली क्षेत्रीय फिल्मों को मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन सिनेमा घरों में प्रमुखता के साथ प्रदर्शित करने की मांग शामिल है।
उसी प्रकार के नियम की मांग झारखंड में भी करने की मांग उन्होंने की है। भारती ने अपने अनुभव साझा करते हुए लिखा है कि मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन के संचालकों को झारखंड की क्षेत्रीय फिल्मों से रिकवरी नहीं होती, थियेटर मालिक बहाना बना कर क्षेत्रीय फिल्मों को अपने सिनेमा घरों में प्रदर्शित करने से सख्त मना कर देते हैं।
अगर कुछ फ़िल्में एक दो सिनेमा घरों में प्रदर्शित कि भी जाती है तो उसमें निर्माता या निर्देशक का सिनेमा घर के संचालक के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध होता है। उन्होंने सरकार से सवाल पूछा है कि ऐसे में झोलीवुड कब तक संघर्ष करता रहेगा?
आगे भारती ने लिखा है कि झारखंड में वर्षों से क्षेत्रीय भाषा मे एल्बम, फ़िल्म, डॉक्यूमेंट्री, लघु फ़िल्म बनाया जाता रहा है। किन्तु उचित संसाधन नही मिलने, सही समय पर फ़िल्म प्रदर्शित के लिए सिनेमा हॉल नही मिलने से क्षेत्रीय सिनेमा उपेक्षित है।
इसी कारण स्थानीय फ़िल्म मेकर फ़िल्म निर्माण को लेकर आगे आना नही चाहते हैं। जबकि राज्य के प्रतिभाओं ने अपने टैलेंट से देश - विदेश में जाकर अपना लोहा मनवा चुके हैं।
दूसरे राज्यों के सिनेमा के बारे में उन्होंने मुख्यमंत्री का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए लिखा कि पिछले कुछ दशक से क्षेत्रीय सिनेमा बेहतरीन फिल्में बना रहा है। इसलिए आज लोग बॉलीवुड फिल्मों को देखना कम कर क्षेत्रीय सिनेमा को देखना अधिक पसंद करते हैं।
क्षेत्रीय सिनेमा का ही परिणाम है कि तमिल, मलयालम, कन्नड़ सहित दक्षिण भारत के फिल्म उद्योग व वहां के लोगों के अपने हीरो हैं और वे उन्हीं को सबसे अधिक पसंद करते हैं। मगर झारखंड के लिए दुर्भाग्य की बात है कि दो दशक बाद भी झारखंड की फ़िल्म इंडस्ट्री ने यहाँ की जनता को अपना हीरो नही दे सका है।
आज भी हमें दूसरे इंडस्ट्री के हीरो को ही अपना हीरो मानना पड़ता है। झारखंड में फिल्म निर्माण को लेकर अपार संभावनाएं हैं। प्रकृति के उपहार को अवसर में बदलने की जरूरत है। इससे झारखंड राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में अलग पहचान बनाने में सफलता अर्जित कर सकेगा।
सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए। झारखंड की खासियत और विशेषता बताते हुए मुख्यमंत्री और कला मंत्री को उन्होंने लिखा है कि झारखंड भारत के दूसरे कश्मीर के सामान है। जहां प्रकृति ने अपने सौंदर्य का खजाना जम कर बरसाया है।
घने जंगल, खूबसूरत वादियां, जलप्रपात, वन्य प्राणी, खनिज संपदाओं से भरपूर और कला संस्कृति से परिपूर्ण है। ऐसे में राज्य में फ़िल्म सिटी बनने से टूरिजम के व्यापार में बढ़ोतरी होगी, साथ ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोग अपने राज्य में ही रोजगार कर सकेंगे।
जिससे यहां के कलाकारों का पलायन रुकेगा। साहिबगंज न्यूज चैनल के एडिटर इन चीफ एवं पूर्वांचल सूर्य के ब्यूरो प्रमुख संजय कुमार धीरज से दूरभाष पर बात करते हुए भारती ने कहा कि 3 मार्च 2021 को वित्त मंत्री रामेश्वर उरावं ने वितीय वर्ष 2021 – 2022 के लिए सदन में 91277 करोड़ का बजट पेश किया लेकिन स्थानीय सिनेमा कलाकारों,
फिल्मों के प्रोत्साहन एवं उत्थान के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं किया, ना ही क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों के विकास के लिए सदन में ऐसी किसी योजना पर चर्चा की गई, जिससे क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा मिल सके।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में सिनेमा हॉल नहीं होने से ग्रामीण क्षेत्र के सिनेमा प्रेमियों को सैकड़ों किलोमीटर से भी अधिक दुरी की सफ़र तय कर के फिल्म देखने के लिए शहरों तक जाना पड़ता है।
ग्रामीणों को फिल्म देखने के लिए शहरों तक नहीं आना पड़े इसके लिए कमिटी का गठन कर प्रखंड स्तर पर मिनी सिनेमा हॉल बनाने की जरुरत है। तहसील स्तर पर सिनेमा हॉल बनने से क्षेत्रीय फिल्मों को भी बढ़ावा मिलेगा और फिल्म बनाने वाले निवेशक बढ़चढ़ कर के यहां निवेश कर सकेंगे।
बता दें कि निरंजन भारती झारखंड के हजारीबाग के चौपारण निवासी हैं। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ मुंबई से मासकॉम में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स करने के बाद फिल्मों को निर्देशित करना शुरू किया।
उनकी पहली फिल्म सबरंग थी जबकि झारखंड के सारंडा के जंगलों की पृष्ठभूमि में बनी हिन्दी फ़िल्म सारंडा अंडर प्रोसेस है। वहीं 2015 में स्वच्छ भारत शार्ट फिल्म फेस्टिवल में "छोटी गलती" के लिए एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा गया था।
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