"मर्द को दर्द नहीं होता" जैसी अवधारणा : आखिर इसमें गलत कौन है ?


मस्कार! मैं अमृता तिवारी, आज आप लोगों के सामने अपनी बात प्रस्तुत कर रही हूँ। आज मैं बात करूंगी गलत कौन है? समाज के प्रस्तुतकर्ताओं में से गलत कौन है? मैं बात कर रही हूं मर्द और औरत में से किसी एक वर्ग को चुनने की गलती करने के बारे में।

"मर्द को दर्द नहीं होता" जैसी अवधारणा : आखिर इसमें गलत कौन है ?







महिला और पुरुष वर्ग के बीच एक विचारधारा को लेकर जो दूरी आई है, उस दूरी को मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। एक मर्द के लिए अपने सोच को सामने रखना, अपने गुस्से को महिला के सामने बिना हिंसक हुए जाहिर करना, रोजमर्रा की जिंदगी होनी चाहिए और साथ ही साथ हम महिलाओं को पुरुषों के लिए बनाए गए एक विचारधारा को बदलने की कोशिश करनी चाहिए।



गलत कोई एक वर्ग नहीं होता, हिंसक होना दोनों वर्गों के लिए गलत है, कुछ विशेष कानूनों का गलत इस्तेमाल करना गलत है। एक महिला होने के नाते मैंने अपने विचारों को रखा है। मुझे नहीं पता आप पाठकों को यह सही लगेगा या गलत, मगर एक बार इस बात को समझ कर सोचिएगा जरूर। मैं मानती हूं यह मेरी अपनी विचारधारा है, मगर मैं यह भी जानती हूं कि मैं गलत नहीं हूं।


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amrita tiwari

1 Response to ""मर्द को दर्द नहीं होता" जैसी अवधारणा : आखिर इसमें गलत कौन है ?"

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