बिटिया : त्याग और बलिदान की पहली पसंद : अमृता तिवारी का विशेष आलेख Sahibganj News Feb 7, 2022 Edit नमस्कार पाठकों, मैं अमृता तिवारी आज आप लोगों के सामने एक नए विषय के साथ हाजिर हूँ। यह विषय मेरी एक बहुत ही प्यारी, दुलारी, जान से भी प्यारी सखी काजल द्वारा सुझाया गया है। यहाँ मैं बात करूंगी कुछ रूढ़ीवादी सोच, जिम्मेदारियां और लोग जो सिर्फ महिला वर्ग को ही केंद्र बनाते हैं।हम अपने आसपास,अपने घरों में यह कई बार देख चुके हैं की किसी भी प्रकार का बंधन, रुकावट के लिए महिलाओं को ही आगे किया जाता है।जन्म के बाद से ही हम बच्चों के बीच फर्क करना शुरू कर देते हैं। उम्र के एक पड़ाव को पार करने के बाद जो जिम्मेदारियां हम लड़कियों पर डालते हैं, लड़के उसे जानते भी नहीं है।बेटियां घर से बाहर नहीं निकल सकती हैं, स्कूल - कॉलेजों में लड़के दोस्त नहीं बना सकती हैं, क्योंकि इससे उनके परिवार की इज्जत कम हो जाती है। वहीं घर के बेटों पर ऐसी कोई पाबंदियां नहीं होती है। वह जहां चाहे वहां जा सकते हैं, जिस वक्त चाहे उस वक्त जा सकते हैं और जिससे दोस्ती करना चाहे, उससे दोस्ती कर सकते हैं।इन सभी बाधाओं को पार कर अगर लड़कियां नौकरी करने जाती हैं तो वहां भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर वह बहू है तो घर की जिम्मेदारी और नौकरी में से घर की जिम्मेदारी को उसे सर्वोपरि रखना पड़ता है।अगर वह एक मां है तो बच्चे की सारी जिम्मेदारी उसी पर थोप दी जाती है।मैं स्वीकार करती हूं की सभी जगह सामान्य स्थिति नहीं है, मगर फिर भी कुछ जगहों पर यह स्थिति बरकरार है। इसके लिए मैं हमारे समाज से, हमारे घर के पुरुष वर्गों से यह विनती करूंगी की अपनी मां - बहन दोस्त - बेटी, इन सब को अपने बराबर का अधिकार दिलाना आपकी जिम्मेदारी बनती है और इसे आप निभाने की पूरी कोशिश करें।एक बड़ा ही प्यारा और लोकप्रिय गीत है-"ये बेटिया तो बाबुल की रानियाँ है .....मीठी - मीठी प्यारी - प्यारी कहानियाँ है...." वाकई में बेटियां बहुत प्यारी होती हैं, इनका हर रूप बहुत सच्चा होता है, अगर इन्हें हम समझें और इज्जत व प्यार बनाए रखें, तो वह आपके मान - सम्मान तथा प्यार में कोई कमी नहीं छोड़ेगी।Connect with Sahibganj News on Telegram and get direct news on your mobile, by clicking on Telegram.Telegram निचे दबा कर 👇 शेयर करना ना भूले
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