युद्ध से बचने के लिए युक्रेन के हर घरों, संस्थानों, मेट्राे में है बंकर : साइरन बजने पर लोग इसी बंकर में छुपकर बचाते हैं जान
यूक्रेन में मेडिकल के छात्र मोहम्मद मशरुर अहमद शनिवार को उधवा प्रखंड के अमानत दियारा अपने घर, अपनी मां राबिया बीबी और पिता बदरुद्दीन शेख़ के पास सकुशल वापस आ गए। इसके मां - पिता 23 फरवरी से ही टीबी के सामने जगकर रात गुजार रहे थे।
छात्रों ने युद्ध को नजदीक से देखा
मशरुर कहते हैं कि युद्ध हमारे मेडिकल कॉलेज सेे हजारों किलोमीटर दूर पर हो रहा था। इसके अलावे भारतीय छात्र जहां पर मेडिकल या अन्य की पढ़ाई कर रहे थे, वहां से युद्ध काफी दूर पर हो रहा था।कॉलेज में साथ पढ़ते थे पर सब अलग वॉर्डर पर पहुंचे
मशरुर कहते हैं कि साहिबगंज के 3 और गोड्डा के 2 छात्र एक ही मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। पर माहौल ऐसा बन गया कि कोई हंगरी वॉर्डर चला गया तो कोई चिकोस्लाविया, कोई पाॅलेंड तो कोई लौगन्स बॉर्डर की ओर चला गया।सड़कों पर सन्नाटा है और लोग भयभीत हैं
मशरुर शेख कहते हैं कि यूक्रेन की सड़कों पर युद्ध के बाद सन्नाटा है। युक्रेनी घरों से कम निकल रहे हैं। युद्ध में अधिकांश सरकारी संपत्तियों को लक्ष्य कर उड़ाया जा रहा है। जब साइरन की आवाज गुंजती है तो इसका मतलब होता है कि मिसाइल एटैक हो सकता है। साइरन बजने के बाद लोग बंकर में छुप जाते हैं। सच कहा जाए तो यूक्रेन में युद्ध से बचने के लिए पहले से ही बंकर की व्यवस्था की गई है।ऐसे पहुंचे अपने घर
मशरुर बताते हैं कि एक पल के लिए ऐसा लगा की शायद अब हम जिंदा नहीं बचेंगे। फिर साहस करते हुए वहां से 25 फरवरी को पोलैंड के लिए रवाना हुए, लेकिन 40 किलोमीटर लंबी जाम लगी थी। 40 किलोमीटर के सफर तय करने के बाद पोलैंड तो पहुंच गए, लेकिन सीमा में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।बाद में लवीब सिटी होते हुए हंगरी बॉर्डर पहुंचे, जहां हंगरी की सरकार ने हमलोगों को आर्मी डिटेंशन सेन्टर पर रखा। इसके बाद भाररीय दूतावास को इसकी जानकारी दी गई, फिर 2 मार्च को दिल्ली लाया गया, जहाँ झारखण्ड भवन में रखने के बाद 3 मार्च को दिल्ली एयरपोर्ट से राँची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पहुंचे।
शुक्रवार को रांची से वनांचल एक्सप्रेस पकड़कर शनिवार को साहिबगंज अपने घर आए। बहरहाल मशरुर की मां राबिया बीबी, पिता बदरुद्दीन भेख, उनके पड़ोसी व परिवार के अन्य सदस्यों ने उसके घर लौट आने पर राहत की सांस ली है।
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