हम साथ साथ हैं... We are together....


मस्कार दोस्तों मैं अमृता तिवारी एक लंबे समय के बाद आप लोगों के सामने फिर से हूं। मेरे आज के लेख का शीर्षक एक बहुत ही चर्चित और सुंदर चलचित्र पर रखा गया है। मैंने भी उन्हीं बातों को सामने रखा है जो उस चलचित्र में दिखाया गया।

हम साथ साथ हैं... We are together....

कहते हैं जीवन की गाड़ी को सही तरीके से चलाने के लिए पुरानी अच्छी बातों को कभी कभी याद करना पड़ता है इसीलिए मैंने भी थोड़ी सी कोशिश की है तो आइए पढ़ते हैं मेरे आज के लेख को। संयुक्त परिवार जिसमें एक साथ एक ही घर में कई पीढ़ियों के लोग रहते हैं जिस परिवार मे तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य साथ साथ निवास करते है जिनकी रसोई,

पूजा पाठ एवं संपत्ति सामूहिक होती है उसे ही सयुंक्त परिवार कहते है।मनुष्य को अपने विकास के लिए समाज की आवश्यकता हुयी, इसी आवश्यकता की पूर्ती के लिए समाज की प्रथम इकाई के रूप में परिवार का उदय हुआ क्योंकि बिना परिवार के समाज की रचना के बारे में सोच पाना असंभव था।

समुचित विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति  को  आर्थिक ,शारीरिक ,मानसिक सुरक्षा का वातावरण का होना नितांत आवश्यक है। परिवार में रहते हुए परिजनों के कार्यों का वितरण आसान हो जाता है। साथ ही भावी पीढ़ी को सुरक्षित वातावरण एवं स्वास्थ्य पालन पोषण द्वारा मानव का भविष्य भी सुरक्षित होता है उसके विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।

परिवार में रहते हुए ही भावी पीढ़ी को उचित मार्ग निर्देशन देकर जीवन स्नाग्राम के लिए तैयार किया जा सकता है।आज भी संयुक्त परिवार को ही सम्पूर्ण परिवार माना जाता है। वर्तमान समय में भी एकल परिवार को एक मजबूरी के रूप में ही देखा जाता है।


हमारे देश में आज भी एकल परिवार को मान्यता प्राप्त नहीं है औद्योगिक विकास के चलते संयुक्त परिवारों का बिखरना जारी है परन्तु आज भी संयुक्त परवर का महत्त्व कम नहीं हुआ है। संयुक्त परिवार के महत्त्व पर चर्चा करने से पूर्व एक नजर संयुक्त परिवार के बिखरने के कारणों ,एवं उसके अस्तित्व पर मंडराते खतरे पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं।

संयुक्त परिवारों के बिखरने का मुख्य कारण है रोजगार पाने की आकांक्षा,बढती जनसँख्या तथा घटते रोजगार के कारण परिवार के सदस्यों को अपनी जीविका चलाने के लिए गाँव से शहर की ओर या छोटे शहर से बड़े शहरों को जाना पड़ता है और इसी कड़ी में विदेश जाने की आवश्यकता पड़ती है।

परंपरागत कारोबार या खेती बाड़ी की अपनी सीमायें होती हैं जो परिवार के बढ़ते सदस्यों के लिए सभी आवश्यकतायें जुटा पाने में समर्थ नहीं होता।अतः परिवार को नए आर्थिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ती है। जब अपने गाँव या शहर में नयी सम्भावनाये कम होने लगती हैं तो परिवार की नयी पीढ़ी को राजगार की तलाश में अन्यत्र जाना पड़ता है।


अब उन्हें जहाँ रोजगार उपलब्ध होता है वहीँ अपना परिवार बसाना होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं होता की वह नित्य रूप से अपने परिवार के मूल स्थान पर जा पाए कभी कभी तो सैंकड़ो किलोमीटर दूर जाकर रोजगार करना पड़ता है।

संयुक्त परिवार के टूटने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण नित्य बढ़ता उपभोक्तावाद है जिसने व्यक्ति को अधिक महत्वकांक्षी बना दिया है। अधिक सुविधाएँ पाने की लालसा के कारण पारिवारिक सहनशक्ति समाप्त होती जा रही है, और स्वार्थ परता बढती जा रही है।

अब वह अपनी खुशियां परिवार या परिजनों में नहीं बल्कि अधिक सुख साधन जुटा कर अपनी खुशिया ढूंढता है ,और संयुक्त परिवार के बिखरने का कारण बन रहा है। एकल परिवार में रहते हुए मानव भावनात्मक रूप से विकलांग होता जा रहा है।


जिम्मेदारियों का बोझ ,और बेपनाह तनाव सहन करना पड़ता है परन्तु दूसरी तरफ उसके सुविधा संपन्न और आत्म विश्वास बढ़ जाने के कारण उसके भावी विकास का रास्ता खुलता है। संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यव्हार पर निरंतर निगरानी बनाय रखते हैं, किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है।

अर्थात प्रत्येक सदस्य चरित्रवान बना रहता है।किसी समस्या के समय सभी परिजन उसका साथ देते हैं और सामूहिक दबाव भी पड़ता है कोई भी सदस्य असामाजिक कार्य नहीं कर पता ,बुजुर्गों के भय के कारण शराब जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराइयों से बचा रहता है और आपको यह भी बतादूँ की कुछ भी हो हर बड़े ओर छोटे का पूरा प्यार और दुलार मिलता हैं।

किसी विपत्ति के समय ,परिवार के किसी सदस्य के गंभीर रूप से बीमार होने पर ,पूरे परिवार के सहयोग से आसानी से पार पाया जा सकता है। जीवन के सभी कष्ट सब के सहयोग से बिना किसी को विचलित किये दूर हो जाते हैं।


कभी भी आर्थिक समस्या या रोजगार चले जाने की समस्या उत्पन्न नहीं होती क्योंकि एक सदस्य की अनुपस्थिति में अन्य परिजन कारोबार को देख लेते हैं। संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यव्हार पर निरंतर निगरानी बनाय रखते हैं,

किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है अर्थात प्रत्येक सदस्य चरित्रवान बना रहता है।किसी समस्या के समय सभी परिजन उसका साथ देते हैं और सामूहिक दबाव भी पड़ता है कोई भी सदस्य असामाजिक कार्य नहीं कर पता, बुजुर्गों के भय के कारण शराब जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराइयों से बचा रहता है उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है की संयुक्त परिवार की अपनी गरिमा होती अपना ही महत्त्व होता है।


ऐसे ही और कई बिंदु है जो हमें परिवार की कीमत का एहसास कराते हैं। अकेले जीवन कांटा जरूर जा सकता है लेकिन जीवन को बेहतर तरीके से अनुभव करने के लिए हमें परिवार की आवश्यकता हर कदम पर पढ़ती रहेगी म।हमारी आने वाली पीढ़ी या वह हर एक इंसान जो परिवार की कीमत नहीं जान रहा वह इसे जितनी जल्दी समझे उतना अच्छा है।

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amrita tiwari

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