झारखंड में बालू के लिए विपक्ष ने किया सवाल
राज्य के 608 बालू घाटों में से केवल 17 बालू घाटों का ही टेंडर होना.शेष जगहों पर अवैध रूप से बालू का उठाव किया जा रहा है और बाजार में बेचा जा रहा है.
राज्य में पिछले चार साल से बालू घाटों की बंदोबस्ती नहीं हो सकी है. झारखंड में प्रतिमाह 80 से 100 करोड़ रुपये का बालू का अवैध कारोबार हो होता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बालू कहां से आ रहा है?
बालू कारोबारी का कहना है कि रात के अंधरे में बालू घाटों से बालू की निकासी होती है और फिर स्थानीय ग्रामीण से लेकर, रंगदार, राजनीतिक दल, थाना से लेकर जिला के शीर्ष पदाधिकारियों तक वसूली होती है, तब एक ट्रक बालू किसी को मिल पाता है. एक बालू कारोबारी कहना है कि राज्य में संगठित रूप से बालू का अवैध कारोबार हो रहा हैझारखंड के बालू की बिक्री उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल तक में भी होती है. बालू कारोबारियों से जब बातचीत की गयी, तो बताया गया राज्य के सभी 24 जिलों में छह से सात हजार टर्बो ट्रक, हाइवा व ट्रैक्टर से रोजाना बालू का उठाव हो रहा है. यहां केवल ट्रक के आधार पर ही खपत की जानकारी दी गयी है. राजधानी रांची में ही 500 ट्रक बालू की हर दिन बिक्री हो रही है. इस तरह पूरे राज्य में लगभग 6605 टर्बो ट्रक बालू की खपत प्रतिदिन हो रही है.
वर्तमान में एक ट्रक बालू की न्यूनतम कीमत चार हजार रुपये है. यानी प्रतिमाह लगभग 80 से 100 करोड़ रुपये बालू का अवैध कारोबार हो रहा है. इसमें हाइवा व ट्रैक्टर से होनेवाले ढुलाई भी शामिल है़. अवैध कारोबार के चलते जहां रंगदार, नेता, पुलिस और अफसर मालामाल हो रहे हैं, वहीं राजकोष को सालाना लगभग 150 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.
ये हैं झारखंड के 17 बालू घाट, जिनका हुआ है टेंडर
झारखंड में केवल 17 बालू घाटों से ही वैध रूप से बालू का उठाव हो रहा है. इन घाटों की बंदोबस्ती पूर्व में ही हो चुकी है. जेएसएमडीसी के चतरा के चार, सरायकेला-खरसावां के एक, कोडरमा के दो, दुमका दो, देवघर के पांच, हजारीबाग के एक, खूंटी के दो व गुमला के एक बालू घाट ही ऐसे ही जिनमें माइंस डेवलपर सह ऑपरेटर(एमडीओ) नियुक्त हैं. जो वैध तरीके से बालू का उठाव कर सकते हैं.पांच दिन की वैलिडिटी खत्म तो रिचार्ज कराना होता है
घाट पर स्थानीय ग्रामीण, माफिया, फिर संबंधित घाट का संबंधित स्थानीय थाना दो से पांच हजार, विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बंटवारा, फिर रास्ते में पड़ने वाले थाना एक हजार से दो हजार तक, पेट्रोलिंग वाले से मोल-भाव के अनुसार पैसे देने होते हैं, वहीं शहर के थाने में महीना फिक्स है. एक हाइवा से स्थानीय थाना एकमुश्त पांच दिन का पैसा ले लेता है. यह अवधि खत्म हाेने पर कहा जाता है कि वेलिडिटी खत्म हुआ, फिर से रिचार्ज कराइये.हर समय बालू के लिए परेशान होना पड़ता है. हमारी मजबूरी है कि प्रोजेक्ट को पूरी तरह से नहीं रोक सकते हैं. औने-पौने दाम में भी बालू खरीदना पड़ता है. समय पर प्रोजेक्ट पूरा नहीं किया गया, तो पेनाल्टी भरना पड़ता है.
अमित अग्रवाल, बिल्डर
कहां कितने ट्रक बालू की खपत है रोजाना
रांची 500
जमशेदपुर 500
बोकारो 450
धनबाद 200
देवघर 200
गिरिडीह 250
रामगढ़ 120
चतरा 100
कोडरमा 200
पलामू 250
लातेहार 150
गढ़वा 1000
खूंटी 150
लोहरदगा 100
गुमला 320
सिमडेगा 200
जमशेदपुर 390
चाईबासा 175
सरायकेला 200
जामताड़ा 150
दुमका 150
गोड्डा 400
पाकुड़ 250
साहिबगंज 100
कुल 6605
जेएसएमडीसी चार वर्षों से नहीं करा सका है टेंडर
राज्य सरकार के फैसला के अनुसार कैटगरी-2 के सभी बालू घाटों का संचालन जेएसएमडीसी को ही करना है. यह फैसला वर्ष 2017-18 में ही किया गया. इसके बाद से ही टेंडर की प्रक्रिया चल रही है. पर कभी टेंडर पूरा नहीं हो सका है. कैटगरी-2 में राज्य में 608 बालू घाट चिह्नित हैं.इन घाटों को क्षेत्रफल के अनुसार तीन श्रेणी यानी कैटगरी-ए में 10 हेक्टेयर से कम, कैटगरी-बी में 10 हेक्टेयर से 50 हेक्टेयर और कैटगरी-सी में 50 हेक्टेयर से अधिक के बालू घाटों को रखा गया है.
जेएसएमडीसी द्वारा इन बालू घाटों के संचालन के लिए माइंस डेवलपमेंट ऑपरेटर (एमडीओ) की नियुक्ति के लिए टेंडर किया गया था. इसके तहत प्रथम चरण में एजेंसी को सूचीबद्ध जेएसएमडीसी द्वारा कर लिया गया है. दूसरे चरण में एजेंसी के चयन के लिए फाइनेंशियल बिड की प्रक्रिया जिलावार संबंधित उपायुक्त के द्वारा घाट वार करना था. उपायुक्त को संबंधित घाटों के लिए श्रेणीवार सूचीबद्ध एजेंसी में से कैटगरी-ए एवं कैटगरी-बी बालू घाटों के लिए वित्तीय निविदा के माध्यम से एजेंसी का चयन करना था.
इसी दौरान एनजीटी के पांच सितंबर के आदेश से जिलों का डीएसआर तैयार कर बंदोबस्ती करने पर छूट दी. जिसमें सभी बालू घाटों के लिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) तैयार कराया जा रहा है. इसके बाद इसे स्टेट इनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट कमेटी (सिया) के पास भेजा जायेगा और पर्यावरण स्वीकृति ली जायेगी. फिलहाल डीएसआर जिलों द्वारा तैयार करने की प्रक्रिया ही चल रही है.
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