जोशीमठ - मनुष्य के लालच के कारण पहाड़ के नीचे धंसता एक शहर, ये हालात क्यों पैदा हुई, डालते हैं एक नजर


जोशीमठ एक प्राचीन शहर है। 

जोशीमठ - मनुष्य के लालच के कारण पहाड़ के नीचे धंसता एक शहर, ये हालात क्यों पैदा हुई, डालते हैं एक नजर


यहाँ ८वीं सदी में धर्मसुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ था और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के विभिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पहले यहीं उन्होंने प्रथम मठ की स्थापना की थी। 

हिंदू आस्था का प्रतीक रहा यह शहर आज धंस रहा है। इसके पीछे का कारण भूकंप नहीं है, बल्कि मनुष्य का लालच है। यह शहर 3000 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेशियरों के लाए गए मलबों और टूटे - फूटे पर्वतों के ढेर पर बसा है। इस शहर पर 80 के दशक में ही एक कमेटी ने एक रिपोर्ट छापा था कि यह शहर प्राकृतिक आपदा के मुहाने पर खड़ा है।

इस रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि यदि इस शहर को बचाना है तो बड़ी - बड़ी इमारतों का निर्माण रोकना होगा, ढलान के ऊपर जंगल उगाने होंगे, सड़कों और बांधों को बनाने के लिए विस्फोटकों के प्रयोग से बचना होगा, लेकिन वास्तव में इस अनुशंसा के विपरीत ठीक वही काम किए गए, जिनके लिए इस कमेटी ने मना  किया थी। आज पर्यटन स्थल के रूप में बद्रीनाथ एवं औली में तमाम बहुमंजिला होटलों का निर्माण किया गया है और ऐसे बहुत सारे निर्माण हो रहे हैं।

वर्तमान में शहर के धंसने का समसामयिक कारण 

(1) एनटीपीसी द्वारा बनाए जा रहे बिजली घर के अंडरग्राउंड टनल के निर्माण के लिए विस्फोटकों का प्रयोग,
(2) जेपी ग्रुप द्वारा बनाए जा रहे जल विद्युत परियोजना के लिए अंधाधुंध खुदाई तथा 
(3) नेशनल हाईवे बनाने के लिए अनियमित ढंग से जंगलों का कटान को इस आपदा का प्रमुख कारण माना जा रहा है।

एनटीपीसी द्वारा बनाए गए एक अंडर ग्राउंड वाटर रिजर्व में पंचर होने के कारण पिछले कई सालों से पानी का भयानक रिसाव हो रहा था, अब यह रिजर्व लगभग सूख चुका है। जिसके कारण खाली रिजर्व में उपस्थित वैक्यूम की वजह से भी जोशीमठ शहर धीरे-धीरे इस खाली हुए गड्ढे की तरफ खिंच रहा है।

अब तो पर्यावरणविद और भूगर्भ शास्त्रियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। यह बड़ी-बड़ी दरारें जो शहर में पड़ चुकी हैं, जिनकी वजह से सड़कें और इमारतें धंसते जा रही हैं, इन दरारों को भरने का कोई तरीका नहीं है। विशेषज्ञों की यही सलाह है कि अब इस जगह का बचाया जाना नामुमकिन है और प्रशासन को लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए। 

कल तक जो शहर सैलानियों से पटा पड़ा होता था, कल तक जिस औली तक केवल कार की सहायता से लोग धवल बर्फबारी का आनंद उठाने जाते थे, वह बद्रीनाथ जो पंच केदारों में से एक हुआ करता था, आज मनुष्य के लालच की भेंट चढ़ चुका है। चारों तरफ अफरा-तफरी है। दरारों से भरी हुई सड़कें और मकान भय और आतंक दोनों उत्पन्न करते हैं।

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