"आत्मोत्सव" का त्योहार है मकर संक्रांति : प्रयाग, वाराणसी, पुष्कर, ओंकारेश्वर, कुरुक्षेत्र से लेकर विदेशों तक में है इस पर्व की महिमा


"संक्रांति" अर्थात दो ऋतुओं के मिलन का काल

"आत्मोत्सव" का त्योहार है मकर संक्रांति : प्रयाग, वाराणसी, पुष्कर, ओंकारेश्वर, कुरुक्षेत्र से लेकर विदेशों तक में है इस पर्व की महिमा


पूरे वर्ष भर में अनेक ऋतुएं और संक्रांतियां आती हैं, पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है मकर संक्रांति। श्रद्धा-आस्था, स्नान-दान, तप, ध्यान, जप, सेवा, पवित्रता और देवदर्शन मकर संक्रांति का मूल है। भारतीय संस्कृति के प्रति श्रद्धा-आस्था व्यक्त करने का भी यह पर्व है।   

संक्रांति काल को जागरण काल भी कहते हैं। जीवन और जीव मात्र के जागरण की बेला। सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, तो मकर संक्रांति आती है। इसी समय से सूर्य में तापवृत्ति बढ़ती है।

"आत्मोत्सव" है मकर संक्रांति

सूर्य आत्मा का प्रतीक है, मकर के साथ सूर्य में चैतन्यता आना, मानवमात्र में आत्मचेतना व आत्मोत्थान का प्रतीक है। इसीलिए इस पर्व को ‘आत्मोत्सव’ भी कहते हैं। इस अवसर पर प्राणिमात्र की चैतन्यता बढ़ती है, वनस्पतियों में नई कोपलें व फूलने-फलने का चक्र गति पकड़ता है। इसे प्रकृति में बदलाव, परिवर्तन की बेला भी कही गई है। बसंत भी इसी के साथ अपना प्रभाव दिखाने लगता है। लम्बे समय से बन्द, देव व धार्मिक कार्य भी इस बेला से प्रारम्भ हो जाते हैं और लोग पुण्य कार्यों में सहभागिता का शुभ अवसर खोजने लगते हैं।

स्नान द्वारा शारीरिक पवित्रता, दान द्वारा सेवा-सहयोग, तप से आत्म चैतन्यता, ध्यान-जप से ईश्वर आराधना से जुड़कर जीवन में धर्म को जगाना हर मानव का लक्ष्य है। यह बेला इन धर्मकार्यों के लिए सर्वाधिक अनुकूल मानी जाती है।

परम्परा है सदियों पुरानी

तीर्थस्थलों में श्रद्धालुओं द्वारा स्नान, दान व धर्म-कर्म की यह परम्परा सदियों पुरानी है। इस दिन पवित्र नदियों, सरोवरों में स्नान एवं कुछ न कुछ गुरुसेवा, गौसेवा, ईश्वर सेवा, धर्मसेवा, गुरुकुल सेवा आदि पवित्रतम पुण्य कार्यों के लिए दान करने का भी विधान है। इसीलिए पवित्र नदियों के किनारे स्थित देशभर के तीर्थ इस दिन श्रद्धालुओं से भर उठते हैं। प्रयाग, वाराणसी, पुष्कर, ओंकारेश्वर, कुरुक्षेत्र से लेकर विदेशों में इस पर्व की महिमा है।

दान की महत्वता

कहते हैं कि इस पर्व के दिन धर्म सेवा से जुड़े कार्यों में स्नान करके दान करने से जन्मों के पुण्य बढ़ते हैं। घर-परिवार में यह पर्व सुख-सौभाग्य जगाता है। देवशक्तियों की कृपा एवं पितरों का आशीष मिलता है। पितर दोष मिटते हैं। इस दिन काले तिल के लड्डू खाने व काली वस्तुओं का दान सौभाग्य बढ़ाता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के पावन पर्व पर पूजा-अर्चना कर खिचड़ी चढ़ाने व तिल के मीठे व्यंजन बनाने,

तिल के उबटन से स्नान करने, तांबे के बर्तन से भगवान सूर्य को जल चढ़ाने, गुरु तीर्थ में गाय, वृद्ध, ब्रह्मचारी, देवता को सेवा-दान करने से दुःख कटते हैं। दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में इस पर्व के साथ पोंगल मनाने का अपना विशिष्ट स्थान है। लोकपर्वों में इसी के एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व आयोजित होता है। वैसे यह सम्पूर्ण माह ही धर्म कार्यों में योगदान के लिए समर्पित है।

Connect with Sahibganj News on Telegram and get direct news on your mobile, by clicking on Telegram.

0 Response to " "आत्मोत्सव" का त्योहार है मकर संक्रांति : प्रयाग, वाराणसी, पुष्कर, ओंकारेश्वर, कुरुक्षेत्र से लेकर विदेशों तक में है इस पर्व की महिमा "

Post a Comment

साहिबगंज न्यूज़ की खबरें पढ़ने के लिए धन्यवाद, कृप्या निचे अनुभव साझा करें.

Iklan Atas Artikel

Iklan Tengah Artikel 2

Iklan Bawah Artikel