सरस्वती पूजा विशेष
साहिबगंज :– सभी ऋतुओं के अपने–अपने अलग रंग और अपना राग होता है। फिर भी बसंत ऋतु की की बात और ठाठ निराले हैं। इस मौसम में आप यह देखकर हैरान रह जाएंगे की इस वक्त वसंत उत्सव के आगमन के लिए प्रकृति ने सोलह श्रृंगार किए हैं।
पेड़ों से पुराने पत्ते झड़ रहे हैं और नई कोपलों के लिए प्रकृति ने सारे रास्ते खोल दिए हैं। फिजाओं में आम, कटहल और लीची की मंजर की भीनी–भीनी खुशबू और कोयल की कूक एक अलग ही शमा बांध रही है।
बसंत ऋतु प्रेम का ऋतु है और इसी महीने विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। विद्या का अर्थ यदि जानने योग्य है, तो वह जानने योग्य प्रेम ही तो है। बंगाली पंचांग के अनुसार माघ महीने की एक तारीख से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है।
वहीं, हिंदी पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी से बसंत मास की शुरुआत होती है, और फिर बसंत उत्सव होली तक मनाया जाता है। यह प्रेम की ऋतु है। मधुर गुंजन और श्रृंगार की बेला बसंत ऋतु में ही आती है।
मुक्त आकाश में मादकता उड़ने और छलकने लगती है और आम आदि पेड़ों की शाखाओं पर कोकिल के स्वरों में डूबने के लिए कामदेव फूलों के कोमल तीर चलाते हुए चले आते हैं। बसंत ऋतुओं का राजा भी है, जो दूसरे ऋतुओं का ख्याल भी रखता है।
रचनाधर्मिता से जुड़े हुए लोग इस ऋतु से प्रभावित होते हैं। चित्रकार नई नई कल्पनाएं कैनवास पर उतरता है, तो वहीं संगीतकार बसंत राग गाकर बसंत का स्वागत करता है। इंसान तो इंसान जानवर भी प्रकृति के श्रृंगार के इस दृश्य से अभिभूत हो जाते हैं।
हवा में चारों तरफ मादकता उड़ने लगती है तथा हवा में हर तरफ सुगंध ही सुगंध बिखरने लगती है। पुराने पत्ते काले स्याह पड़कर जब नीचे गिरती हैं तो हवा में एक सरसराहट की एक सनसनीखेज आवाज उभरती है, जो डरावना तो बिलकुल नहीं लगता।
बसंत पंचमी का त्यौहार इस बार 14 फरवरी, बुधवार को मनाया जाएगा। यह त्यौहार हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा की जाती है।
इस दिन ज्ञान, बुद्धि, विद्या, बुद्धिमत्ता, कला और संस्कृति की देवी मां सरस्वती के चरणों में समर्पित करने का दिन है। इस दिन भक्तजन माता सरस्वती की पूजा–अर्चना करते हैं और सुख–समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
संजय कुमार धीरज, साहिबगंज,
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