माँ शारदे की विदाई गीत, प्रोफेसर सुबोध झा की स्वरचित विदाई गीत


माँ शारदे की विदाई गीत,प्रोफेसर सुबोध झा की स्वरचित विदाई गीत


हे माँ वागीश्वरी! ठहरो ना, कुछ देर यहाँ;

रौशन करो मेरी दुनियाँ जो है अंधेर यहाँ;

कब से बैठा हूँ हे माँ बस तेरे ही आश में;

हे माँ! आकर कर दो न कुछ सबेर यहाँ।


विदा हो जाएगी फिर मैं किससे कहूँ?

एक वर्ष बाद आएगी तबतक कैसे रहूँ?

कुछ तो दया करो मुझपर, हे मां शारदे!

तिमिर हटे बस जग का कुछ काम करूँ।


कल ही तो आई हो फिर चल दी कहाँ;

वहां तो गई ही नहीं 

अंधेरा था जहाँ;

अंधेर नगरी का चौपट राजा बन गया हूँ;

भर दो ज्ञान कि 

फैलाता रहूँ जहाँ–तहाँ।


कितनी रौनक थी कि जब तुम थी यहां;

नाचते–गाते बच्चे मिल जाते यहां–वहां;

आंसू लिए नैनों से विदा दे रहा सुबोध;

बता किसकी लेखनी में ढ़ूंढ़ूं तुझे कहां?


स्वरचित विदाई गीत

      सुबोध झा

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