भारतीय मजदूर किसान, मजदूर दिवस पर विशेष
क्या करूँ, कैसे कहूँ इन किसानों की दर्दनाक कथा?
दिल में अथाह दर्द छिपाए सुनिए इनके दिल की व्यथा।
हरित क्रांति की आड़ में बन गई कोई अपनी सरकार;
आस जगी किसानों की कि मिले उन्हें जो है दरकार।
फिर आया एक सुप्रसिद्ध "स्वामीनाथन आयोग";
पर "फूल चचा" ने हवा पिला दी कृषकों को मिला वियोग।
उजड़ी देश की खेती–कृषि प्रधान सिर्फ बना संयोग;
खेत–खलिहान उजड़ गए फल फूलने लगा उद्योग।
क्या किस्मत लिखा था कहाँ थे भाग्य विधाता?
हर विकट परिस्थिति का सामना कर रहे थे अन्नदाता।
आस जगी शास्त्री से,
नारा दिया जय जवान जय किसान;
सदियों बीत गए पर जहाँ के तहाँ रह गए खेत खलिहान।
मिटती रही मजदूरों की आस,
करते रहे बस विश्वास;
होती रही आत्महत्या, उड़ाता रहा उपहास।
दलालों की दलाली चलती रही;
नेताओं की गुलामी पलती रही;
कृषक मजबूर बस मजदूर ही रहे;
कमीशन की कमाई फल फूलती रही।
एक दिन इनके भाग्य खूले,
जब इन्हें एक चौकीदार मिले;
कोशिश हुई इसे बढ़ाने की, नयी कृषि नीति बनाने को चले।
जो अबतक थे बीमार, चहूँओर था भ्रष्टाचार;
सब थे बस स्वार्थपरक,
सब भूल गए थे शिष्टाचार।
जाने लगा प्रत्यक्ष रूप से, इनके खाते में सब्सिडी;
मुखरित हुए तब इनके स्वर, जो आजतक थे रहे फिसड्डी।
किसानों की भलाई के लिए,
लाया एक कृषि बिल;
लागू किया “स्वामीनाथन आयोग" जो था कृषकों का दिल।
घोषणा हुई समर्थन मूल्य का,
जो अबतक का है अधिकत्तम;
भला करेंगे कृषकों की,
जो हो उनके लिए सर्वोत्तम।
पर नजर लगी स्वार्थवीरों की,
उनका भला कहाँ पचा पाया?
खड़ा किया एक आंदोलन, देश में एक भूचाल लाया।
मत तोड़ो सत्ता की खातिर, इस अन्नपूर्णा इन्सान को;
छोड़ दो इन्हें अपनी किस्मत पर,
बक्श दो भोले–भाले किसान को।
सुबोध झा
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