प्रारंभ हुआ मधुश्रावणी पर्व, झारखंड–बिहार, खासकर मिथिलांचल में मधुश्रवणी पर्व का है विशेष महत्व


साहिबगंज जिले की नव विवाहितों ने हर्षोल्लास के साथ मधुश्रावणी व्रत पूजन प्रारंभ किया। झारखंड और बिहार, खासकर मिथिलांचल में मधुश्रावणी पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व उत्तर बिहार के जिलों में विशेष तौर पर मनाया जाता है।

प्रारंभ हुआ मधुश्रावणी पर्व,  झारखंड–बिहार, खासकर मिथिलांचल में मधुश्रवणी पर्व का है विशेष महत्व

इस पर्व की मान्यता है कि इसे नवविवाहिता ही करती हैं, या यूं कहें कि शादी के बाद जो पहला सावन होता है, उसमें इस पर्व को किया जाता है। इस पर्व की खासियत यह है कि इसको महिला पुरोहित ही करवाती  हैं। यानी यह ऐसा इकलौता पर्व है,

जहां महिला ही पुरोहित का काम करती हैं।इस प्रसिद्ध पर्व की विशेषता बताते हुए सुनील कुमार ठाकुर कहते हैं की स्कंद पुराण के अनुसार नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं।    

ऐसी मान्यता है कि आदिकाल में कुरूप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल हुए थे। अपने पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था। इस पर्व का बिहार खासकर, मिथिला में विशेष महत्व है।    

मधुश्रावणी पर्व मिथिला की नवविवाहिताओं के लिए होती है। उनके लिए यह एक प्रकार से साधना है। नवविवाहिता लगातार 15 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती हैं और बिना नमक का खाना खाती है। जमीन पर सोती हैं तथा झाड़ू नहीं छूती हैं।

इस व्रत में बहुत ही नियम से रहना पड़ता है। विषहरी माता मंदिर के मुख्य पुजारी चंद्रकिशोर ठाकुर मधुश्रावणी पर्व की विशेषता बताते हुए कहते हैं की इस साधना में प्रति दिन सुबह में स्नान–ध्यान कर नवविवाहिता विषहरी यानि नाग वंश की पूजा और मां गौरी की पूजा–अर्चना करती हैं।

फिर गीत नाद होता है और कथा सुनती हैं। इस पूरे पर्व के दौरान 15 दिनों की अलग-अलग कथाएं हैं। इसमें भाग लेने के लिए घर के साथ आस-पड़ोस की महिलाएं भी आती हैं। उसके बाद शाम को अपनी सखी–सहेलियों के साथ फूल लोढ़ने जाती हैं। इस बासी फूल से ही मां गौरी की पूजा होती है। पति के दीर्घायु हेतु यह महापर्व 15 दिनों तक चलती रहती है।

By: संजय कुमार धीरज

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