आजादी के जश्न में डूबा था देश, तब विनाशकारी भूकंप ने मचा दी थी भारी तबाही, मारे गए थे हजारों लोग


15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली थी। लेकिन 15 अगस्त का दिन भारत की आजादी के अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण घटना के लिए भी याद किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस के दिन देश के एक हिस्से ने विनाशकारी भूकंप को झेला था, जिससे लगभग 20 से 30 हजार लोगों की जिंदगियां छीन ली थी।

आजादी के जश्न में डूबा था देश, तब विनाशकारी भूकंप ने मचा दी थी भारी तबाही, मारे गए थे हजारों लोग

दरअसल, 15 अगस्त 1950 को देश भर में आजादी के तीन साल पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा था। उसी दौरान भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में एक विनाशकारी भूकंप आया था। भूकंप के झटके भारतीय समयानुसार शाम 7: 39 बजे महसूस किए गए थे। 8.7 तीव्रता वाले इस भूकंप का केन्द्र मिशमी पहाड़ी पर स्थित था।

उस समय यह जमीन पर दर्ज किया गया सबसे शक्तिशाली भूकंप था। इस भूकंप ने असम और तिब्बत दोनों जगहों पर भारी तबाही मचाई थी। विनाशकारी भूकंप में लगभग 4,800 से अधिक लोग मारे गए थे। अकेले असम में 1500 से अधिक लोग मारे गए।

जबकि तिब्बत में 3300 मौतें दर्ज की गईं। कुछ मिडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था की मरने वालों की संख्या 20 से 30 हजार के आसपास रही। हालांकि, सरकार की ओर से इन आंकड़ों की पुष्टि नहीं की गई। बताया जाता है कि असम और तिब्बत में आया भूकंप इतना खतरनाक था कि घर और इमारतें जमींदोज हो गई।

यही नहीं, पहाड़ और नदियों पर इसका काफी असर पड़ा। इस विनाशकारी भूकंप ने प्रकृति के संतुलन को पूरी तरह से बिगाड़ दिया था। इस नुकसान की एक बड़ी वजह यह भी थी कि भूकंप तिब्बत और भारत के बीच मैकमोहन रेखा के ठीक दक्षिण में स्थित था। इस वजह से दोनों क्षेत्रों को काफी नुकसान पहुंचा।

असम–तिब्बत भूकंप को 20वीं सदी का छठा सबसे बड़ा भूकंप बताया जाता है। भूस्खलन के कारण 70 गांव तबाह हो गए थे। यही नहीं, भूस्खलन ने ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों को भी प्रभावित किया था।  संपत्ति के नुकसान के मामले में असम में आया यह भूकंप 1897 के भूकंप से भी अधिक खतरनाक था।

भूकंप के बाद नदियों के उफान पर रहने के कारण बाढ़ भी आ गई और रेत, मिट्टी, पेड़ और सभी तरह का मलवा पहाड़ियों से नीचे गिरने लगा था। इस भूकंप के कारण असम को लंबे समय तक परेशानियों से जूझना पड़ा था।

By: Sanjay Kumar Dhiraj    

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