उमस भरी गर्मी में एक कवि की अभिव्यक्ति, बरसो सावन झूम के
उमस भरी गर्मी में एक कवि की अभिव्यक्ति, बरसो सावन झूम के
सावन का है माह चल रहा;
पर सूर्य की तपिश भारी है;
गर्मी से तन बदन जल रहा;
वर्षा की कशिश जारी है।
कहीं न देखा है सावन में;
श्रंगार करती कोई नारी है;
गुमस भरे इस जीवन में;
अब वर्षा पड़ने की बारी है।
उफ्फ! ये उमसभरी गर्मी;
कैसी है प्राकृतिक बेशर्मी;
बरसो सावन अब झूमकर;
दिखाओ बस अपनी नरमी।
नभ पर बादल बस ऐसे घूमे;
जैसे किसी शादी में फूफाजी;
उमड़ घुमड़ बस ऐसे गरजे;
जैसे बिन बात बिदके जीजाजी।
बरसो सावन झूम झूमकर ;
कुछ दया करो किसानों पर;
तरस रहे हैं शहर दर शहर;
कुछ राहत करो इन्सानों पर।
कण कण बिखरे हैं सड़क पर;
सुखा पड़ा रहा यह प्रदेश;
बरसो सावन अब कड़क कर;
परेशां कृषक बस देता संदेश।
कवियों की लेखनी रूकी है;
स्त्रियों का रूका है श्रंगार;
बरसो सावन जोर जोर से;
फसलों की बस हो भरमार।
परेशान है हर एक इन्सान;
धरती है पड़ी बंजर विरान;
अब बरसो सावन झूमकर;
पुकार रहे भारतीय किसान।
सावन माह भी धूल - धूसरित;
कृषकों की स्थिति है विपरीत;
गुमस भरे इस शहर में सुबोध;
तेरी लेखनी कब होगी मुखरित?
सुबोध झा
0 Response to " उमस भरी गर्मी में एक कवि की अभिव्यक्ति, बरसो सावन झूम के"
Post a Comment