"जल रहा है बांग्लादेश" प्रोफेसर सुबोध द्वारा रचित कविता
जल रहा है बांग्लादेश
ऐ एहसानफरामोश बांग्लादेशी;
हमने तुम्हें कहां समझा विदेशी;
भारत ने ही तुम्हें दी थी आजादी;
पर देखी तेरी एहसानफरामोशी।
देखा हमने उग्रवादियों का समंदर;
कितनी क्रूरता थी दिलों के अंदर;
इन्सानियत मिट रही बंगलादेश में,
देखा हमने वहां तबाही का मंज़र।
यातना सहकर बंगलादेश बनाया,
उसी को बांग्लादेशियों ने जलाया,
मुजीबुर्रहमान की दर्दनाक कहानी,
बस सहयोगियों ने रो रोकर सुनाया।
जिसने दिया देश को राष्ट्रगान,
जिससे मिली राष्ट्र को पहचान,
कवि आमार सोनार बांग्ला का,
चुकाया देशवासियों ने एहसान।
रविन्द्रनाथ की मूर्ति का किया अपमान;
जिसने अपने गीत से तुझे दिया सम्मान;
अरे तुने तो अपने राष्ट्रपिता को न छोड़ा;
अधूरे रह गए सपने तेरे मुजीबुर्रहमान।
मुद्दा मात्र था अदना आरक्षण;
सरकार ने किया आत्मसमर्पण;
चीन, अमेरिका और पाकिस्तान;
का प्रत्यक्ष रूप से रहा समर्थन।
देखो कैसा जल रहा है बांग्लादेश?
शेख हसीना भागकर गई है विदेश,
गर अब भी नहीं सुधरे भारतवासी,
तेरी भी यही गति होगी कमोबेश।
प्रोफेसर सुबोध
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