कृष्ण की रासलीला


कृष्ण की रासलीला

मैं ईश्वर तो हूँ,पर तेरा हर सत्कर्म हूं;

तुम्हारे साथ हूं, हर रिश्ते का मर्म हूं।


मैं तो बस कृष्ण रूपी एक प्रेम हूँ;

हर भावों में बैठ जाने वाला फ्रेम हूं।


जो गर माता यशोदा के  साथ हूँ,

तो बहन सुभद्रा के भी साथ हूँ।


अगर सखी द्रोपदी के साथ हूँ,

रास में हर गोपी के साथ हूँ।


रास में छल से आए शिवजी के साथ हूँ,

तो उन्हें रोकने वाले प्रहरी के साथ हूँ।


अगर मैं अर्धांगिनी रुक्मिणी के साथ हूँ,

तो मैं स्वाभिमानी राधा के भी साथ हूँ।


मैं तो रूक्मिणी से किया विवाह हूं,

पर सदा राधा के प्रेम का प्रवाह हूं।


तुम अगर कवि हो तो मैं रवि हूं;

तुम जो सोचते हो, मैं वही छवि हूं।


हर रूप, हर रंग,हर रचना,हर छंद में हूँ,

हर लेख,हर कहानी व हास्य-व्यंग्य में हूँ।

 

अगर  हँसाता हूँ तो रूलाता भी हूँ,

गर प्रेम करता हूँ तो निभाता भी हूँ।


गर सीख दूं तो आइना भी दिखाता हूँ;

गलती करो तो सही राह भी बताता हूं।


अगर मैं न होता तो तुम रहते अबोध; 

तुम भले ही खुद को कहते "सुबोध";


तुम कहां लिखते,मैं ही हूं तेरा प्रवाह;

मैंने ही दिया तेरी लेखनी को प्रबोध।


सुबोध झा

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