छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था...
छोटा सा गाँव मेरा
पूरा बिग बाजार था...
एक नाई, एक मोची, एक लुहार था....
छोटे–छोटे घर थे,
हर आदमी बङा दिलदार था....
कहीं भी रोटी खा लेते,
हर घर मे भोजन तैयार था....
बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे,
जिसके आगे शाही पनीर बेकार था...
दो मिनट की मैगी ना,
झटपट दलिया तैयार था....
नीम की निम्बोली और शहतूत सदाबहार था....
छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था....
अपना घड़ा कस के बजा लेते,
समारू पूरा संगीतकार था....
मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते,
साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था..
और फिर कबड्डी खेल लेते,
हमें कहाँ क्रिकेट का खुमार था....
दादी की कहानी सुन लेते,
कहाँ टेलीविज़न और अखबार था....
भाई-भाई को देख के खुश था,
सभी लोगों मे बहुत प्यार था...
छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था..
संजना कुमारी,
साहिबगंज।
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