हिन्दी सिनेमा के पतन के कारण
बीते कुछ वर्षों में हिन्दी सिनेमा का लगातार पराभव हो रहा है और उसका स्थान दक्षिण भारत का सिनेमा ले रहा है, जो हिन्दी और हिन्दी सिनेमा के भविष्य के लिए शुभ लक्षण नहीं है। दुखद किन्तु सत्य यह भी है कि हिन्दी सिनेमा के क्षरण के लिए खुद हिन्दी सिनेमा ही उत्तरदायी है। मेरे विचार से हिन्दी सिनेमा के पतनोन्मुख होने के लिए निम्नांकित कारण हैं:-
- 1. अच्छी और मौलिक कहानियों का अभाव होना।
- 2. भेड़चाल की प्रवृत्ति।
- 3. भाई भतीजावाद।
- 4. श्रेष्ठ कलाकारों को अवसर न देना।
- 5. पश्चिम की फिल्मों की फूहड़ नकल करना।
- 6. साहित्य से दूरी रखना।
- 7. अच्छे गीतकारों के स्थान पर कानफोडू बेसिरपैर के गीत लिखने वालों को प्रश्रय देना।
- 8. अगला भाग बनाने की होड़ में अंत के साथ खिलवाड़ करना।
- 9. भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को हेय दृष्टि से देखना।
- 10. ओवरसीज बिजनेस को प्रमुखता देना।
- 11. हिन्दी सिनेमा से हिन्दी को लगातार दूर करना।
- 12. श्रेष्ठ कलाकारों की अगली पीढ़ी तैयार न होने देना।
- 13. अत्यधिक अंग प्रदर्शन और गालियों को शामिल करना।
- 14. हाई सोसायटी और मल्टी प्लेक्स थिएटर के लिए फिल्म बनाने को प्रमुखता देना।
- 15. लगातार फ्लॉप हो रहे कलाकारों विशेषकर स्टार पुत्र पुत्रियों को बार बार अवसर देना।16. फिल्मों से गांवों का लगातार गायब होते जाना।
- 17. संवेदनशील निर्देशकों का अभाव होना या उन्हें आगे न आने देना।
- 18. नैतिकता, जीवन मूल्य और आदर्शों का मखौल उड़ाना।
- 19. खल पात्रों का महिमा मण्डन करते रहना।
- 20. अंग्रेज़ी में लिखी स्क्रिप्ट और संवादों का प्रयोग करना।
- 21. देश के बदल रहे समाज की नब्ज़ पकड़ पाने में विफल रहना।।
- 22. रीमेक संस्कृति को आगे बढ़ाना।
- 23. देश की वास्तविक समस्याओं का अंकन कर पाने में विफल रहना।
संजना कुमारी
साहिबगंज।
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