मकर संक्रान्ति विशेष : बिहार में दही–चूड़ा का महत्व?
चूड़ा को भोजपुरी में "चीऊरा" ही कहा जाता है। यह शब्दों का अपभ्रंश हो जाना भर नहीं है, बल्कि अपभ्रंशित हो जाना भी है। बिहार के लोगों का सबसे फेवरेट रेडीमेड फूड, लिट्टी–चोखा और अचार ही नहीं, बल्कि दही–चूड़ा भी है। मगध से लेकर शाहाबाद और सारण से लेकर चंपारण, तिरहुत से लेकर भागलपुर के बाजीकांचल तक, कोसी कछार से लेकर सीमांचल व मिथिलांचल तक, दही–चूड़ा का क्रेज जबरदस्त है।
सुबह–सवेरे बिहार के आदमी को आप खाने में दही–चूड़ा और लाल मिर्च का भरवा अचार दे दीजिए, तो वह तृप्त हो जाता है। आपको बिहार के हर चौक–चौराहे और बाजारों में दही–चूड़ा की दुकान मिल जाएगी। ग्राहक भी स्थाई होते हैं। सुबह में आपको कहीं निकलना है या घर के सदस्य सोए हुए हैं और घर में दही है, फिर किसी को जगाने की आवश्यकता नहीं है। चूड़ा भिगोकर उसमें दही डालकर और चीनी या गुड़ डालकर मिर्च का अचार लिया और खाकर तृप्त हो गए।
बिहार में सबसे उत्तम क्वालिटी की दही कोसी के इलाके में मिलता है, कहा जाता है की यहां की दही इतनी उत्तम क्वालिटी की होती है, जिसे आप गमछा में भी बांध सकते हैं। बड़े चारागाह होने के कारण उस इलाके में दुधारू पशुओं के दूध में क्रीम की मात्रा ज्यादा होती है।
भागलपुर और मोतिहारी के साथ ही साथ शाहाबाद इलाके में कई विशिष्ट प्रकार का चूड़ा होता है, जो आपकी भूख को कई गुना बढ़ा देता है। वैसे अब हर जगह यह उपलब्ध है। आज भी बिहार के ग्रामीण इलाकों में हाथ से ओखल में कूटा हुआ चूड़ा मिलता है, जो थोड़ा सा कड़ा होता है और जल्दी पानी में डालने के बाद फूलता भी नहीं है।
बिहार में दही–चूड़ा का महत्व इतना जबरदस्त है कि कोई भी शुभ कार्य दही और चूड़ा के साथ ही शुरू होता है। हालांकि मिथिलांचल और अंग प्रदेश में दही–चूड़ा के साथ मछली भी परोसा जाता है, जबकि उत्तर बिहार और शाहाबाद के इलाके में मछली के साथ दूध और दही का सेवन वर्जित होता है। बिहार के खानपान में दही–चूड़ा बेहद फेमस है और लोगों की पसंद भी। स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से भी यह काफी बेहतर होता है।
साहिबगंज से संजय कुमार धीरज
0 Response to "मकर संक्रान्ति विशेष : बिहार में दही–चूड़ा का महत्व?"
Post a Comment