आस्था और सेवा एक साथ, मंदिरों में चढ़ाया दूध आता है जरूरतमंदों के काम
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, भारत में कुपोषण की दर दुनिया में सबसे ज़्यादा है। एक तरफ जहाँ हमारे देश में हज़ारों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, वहीं दूसरी तरफ हर दिन हजारों लीटर दूध मंदिरों में यूँ ही बहा दिया जाता है। इस समस्या को देखते हुए, मेरठ के रहने वाले 24 साल के करण गोयल ने त्योहारों के दौरान बर्बाद होने वाले दूध को बचाने का असरदार तरीका ढूंढ निकाला है।
अपने चार दोस्तों के साथ मिलकर, उन्होंने ऐसा सिस्टम बनाया, जिससे दूध को चढ़ाने के बाद, स्वच्छ तरीके से इकट्ठा किया जा सकता है। करण बताते हैं, "लोग शिवलिंग के ऊपर रखे कलश पर दूध चढ़ाते हैं। हमने कलश में दो छोटे छेद किए। एक उसकी तलहटी में और दूसरा थोड़ी ऊँचाई पर।
कलश की क्षमता 7 लीटर होती है, इसलिए हमने ऐसा सिस्टम बनाया, जिससे पहला एक लीटर दूध शिवलिंग पर गिरे, और बाकी छः लीटर दूध दूसरे छेद से एक पाइप के जरिए कंटेनर में इकट्ठा हो जाए।" उन्होंने सबसे पहले मेरठ के बिलेश्वर नाथ मंदिर में इस तरीके का उपयोग किया।
श्रद्धालुओं को इसके बारे में समझाने के लिए पैम्फलेट बांटे गए और पहली बार में ही इस पहल से 100 लीटर से ज्यादा दूध बचाया गया। इस दूध को जरूरतमंद और अनाथ बच्चों में बांट दिया गया। यह आइडिया जितना अनोखा है, उतना ही सरल भी।
यह धार्मिक भावनाओं और व्यावहारिक सोच के बीच एक बेहतरीन संतुलन है। इस सिस्टम को बनाने में सिर्फ ₹2500 का खर्च आया और अब तक इससे करीब 150 लीटर दूध बचाया जा चुका है। जो अनाथ और एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के लिए काम करने वाले संस्था की बीच बाँटा जाता है।
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