टाटा के कर्ताधर्ता का वैलेंटाइन गिफ्ट, एक वैलेंटाइन गिफ्ट कितनी दूर तक जा सकता है?
सर दोराबजी टाटा को पहली नजर में ही मेहरबाई से प्रेम हो गया, जब वे मैसूर में उनके परिवार से मिलने गए। जल्द ही, 14 फरवरी 1898 को, वैलेंटाइन डे के दिन दोनों का विवाह हो गया। सन् 1900 में गहरे प्रेम से भरे दोराबजी ने अपनी पत्नी को जुबली डायमंड उपहार में दिया।
यह भव्य हीरा, जो मूल रूप से 245 कैरेट का था, विश्व का छठा सबसे बड़ा हीरा था। यह कोहिनूर हीरा से भी दोगुना बड़ा था। मेहरबाई इसे विशेष अवसरों पर पहनती थीं, जो एक प्लैटिनम की चेन में जड़ा हुआ था। 1924 में टाटा स्टील एक बड़े आर्थिक संकट में फंस गया।
कंपनी के पास मजदूरों को वेतन देने के लिए भी धन नहीं था। दोराबजी और मेहरबाई ने अपने संपूर्ण निजी संपत्ति को, जिसमें जुबली डायमंड भी शामिल था, इंपीरियल बैंक के पास गिरवी रख दिया, ताकि कंपनी को बचाया जा सके। सभी मजदूरों को वेतन मिला, कोई भी नौकरी से नहीं निकाला गया, और 1930 के दशक में टाटा स्टील पुनः लाभ में आ गया।
1931 में लेडी मेहरबाई टाटा का निधन हो गया। 1932 में सर दोराबजी टाटा भी इस संसार को छोड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण संपत्ति सर दोराबजी टाटा चैरिटेबल ट्रस्ट को दान कर दी, जिसमें जुबली डायमंड भी शामिल था। यह हीरा 1937 में बेचा गया, और उससे प्राप्त धन से कई प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना हुई, जिनमें टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, TISS और TIFR शामिल हैं।
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